संतोष यादव का जीवन परिचय – Santosh Yadav Biography In Hindi
नाम : संतोष यादव
जन्म : 1969
जन्मस्थान : जोनियावास, रेवाड़ी (हरियाणा)
संतोष यादव का जीवन परिचय
संतोष यादव भारत की एक पर्वतारोही हैं। जिन्होंने एक बार नहीं, दो बार माउंट एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करके विश्व रिकार्ड बनाया है। इसके अलावा वे कांगसुंग (Kangshung) की तरफ से माउंट एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक चढ़ने वाली विश्व की पहली महिला भी हैं। उन्होने पहले मई 1992 में और तत्पश्चात मई सन् 1993 में एवरेस्ट पर चढ़ाई करने में सफलता प्राप्त की। वह एकमात्र ऐसी महिला हैं, जिन्होंने दो बार एवरेस्ट पर चढ़ाई की है। उनकी इसी उपलब्धि के लिए सन २००० में भारत सरकार की ओर से उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया है।
वह विश्व की सबसे कम उम्र वाली महिला हैं, जिन्होंने माउण्ट एवरेस्ट पर चढ़ने में सफलता अर्जित की । यद्यपि सन्तोष यादव, बछेन्द्रीपाल के बाद भारत की दूसरी तथा विश्व की दसवीं पर्वतारोही महिला हैं, जिन्होंने विश्व के सर्वोच्च शिखर पर चढ़ने में सफलता प्राप्त की है ।
जन्म व् माता पिता
संतोष यादव का जन्म जनवरी, 1969 में हरियाणा राज्य के रेवाड़ी में जोनियावास नामक गाँव में हुआ था। संतोष के परिवार में पांच भाई हैं। उनके जन्म के पूर्व उनकी माँ को एक साधु ने जब पुत्र का आशीर्वाद दिया तो उनकी दादी ने कहा कि हमें तो पुत्र नहीं, पुत्री चाहिए और तब संतोष यादव जैसी पुत्री का जन्म हुआ। उन्हें यह नाम ‘संतोष’ इसी कारण दिया गया, क्योंकि उनके जन्म से घर वाले संतुष्ट व खुश थे। उनका परिवार जमींदारों का परिवार है, जो आज व्यापार करता है। सन्तोष को पर्वतारोहण का शौक बचपन से ही था ।
सन्तोष यादव के पिता का नाम सूबेदार रामसिंह यादव और माता का नाम श्रीमती चमेली देवी है ।
प्रारम्भिक शिक्षा
अच्छे स्कूल जाने की चाह और जिद ने उन्हें दिल्ली के स्कूल में दाखिला दिला दिया और वह अपनी माँ व भाइयों के साथ दिल्ली में शिक्षा लेने लगीं। बाद में रेवाड़ी में केन्द्रीय विद्यालय खुल जाने पर वह रेवाड़ी वापस लौट गईं। इस प्रकार वह 12वीं पास कर गईं। इस समय उन पर विवाह का दबाव बढ़ने लगा, लेकिन संतोष ने स्पष्ट कह दिया कि स्नातक किए बिना विवाह नहीं करेंगी।
सन्तोष ने बी॰ए॰ की परीक्षा महारानी लक्ष्मीबाई कॉलेज जयपुर से 1980 में उत्तीर्ण की । लेकिन उन्हें मालूम नहीं था कि इकोनॉमिक्स आनर्स की पढ़ाई करते-करते जिंदगी की गाड़ी अचानक किसी दूसरी ओर मुड़ जाएगी।
पहाड़ों में दिलचस्पी
जयपुर के हॉस्टल में रहते वक्त संतोष यादव को खिड़की से अरावली की पहाड़ियां देखने में बहुत आनन्द आता था। हॉस्टल से एक दिन सुबह वे झालाना डंगरी पहाड़ी की ओर निकल पड़ी। इसके बाद उन्हें उन पहाड़ियों के प्रति आकर्षण हो गया। एक दिन चढ़ते-चढ़ते शीर्ष पर पहुँच गईं और वहां से नीचे का सुन्दर दृश्य देखकर भावविभोर हो गईं। सूर्योदय हो रहा था और ऊँचाई पर यूं लग रहा था कि पहाड़ियों में से सूरज निकल रहा है। उतरते वक्त उन्हें कुछ लड़कों का दल मिला जो रॉक क्लाइम्बिंग कर रहा था। उन्होंने उनमें से एक से पूछा- ”क्या मैं भी यह कर सकती हूँ ?” लड़कों के लीडर ने उत्साहपूर्वक उत्तर दिया ”हां, क्यों नहीं ?” तब उन्हें पता लगा कि यह माउंटेनियरिंग है। यहाँ से ट्रेनिंग लेकर वह भी पर्वतारोहण कर सकती हैं।
एवरेस्ट विजय
तब संतोष ने पर्वतारोहण का इरादा कर लिया। उनके परिवार के लिए यह बात स्वीकार करना अत्यन्त कठिन था। जब उन्हें यह पता लगा कि संतोष ने अपनी सारी जमा पूंजी ‘नेहरू पर्वतारोहण संस्थान’ के पाठ्यक्रम में खर्च कर दी है, तो उन्हें बहुत क्रोध आया। उनके पिता ने उन्हें वापस लाने का निश्चय किया, परन्तु वह जल्दबाजी में सीढ़ियों से फिसल गए और उनके टखने में चोट लग गई। 1986 में नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग में प्रवेश उनके पिता की इच्छा के विरुद्ध था। उनका आत्मविश्वास ही था, जिसके बूते वे उस कोर्स में अव्वल आई।
संतोष ने इसके बाद एडवांस कोर्स भी कर लिया। उनकी मेहनत रंग लाई। अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति, शारीरिक सहन शक्ति के दम पर सर्दी व ऊँचाई पर विजय हासिल कर ली।
तब संतोष ने 1993 में पहली बार एवरेस्ट पर चढ़ाई कर विजय हासिल की। वह एवरेस्ट पर विजय पाने वाली सबसे कम उम्र की महिला थीं।
फिर उन्होंने 1994 में पुन: पर्वतारोहण किया और एवरेस्ट पर चढ़ाई करने में सफलता प्राप्त की। वह विश्व की एकमात्र महिला हैं, जिन्होंने दो बार एवरेस्ट पर चढ़ाई की है।
वह अपनी शारीरिक सक्षमता और फिटनेस के दम पर ही यह सफलता प्राप्त कर सकीं। उन्होंने बताया- ”मेरे लिए वह बेहद खुशी का पल था, जब मैं अवॉर्ड लेकर आई तो पिताजी ने मुझे एक मारुति कार गिफ्ट में दी थी।”
बाद में संतोष यादव ने पुलिस ज्वाइन कर ली। इस नौकरी में वह छुट्टियों में क्लाइम्बिंग का शौक भी पूरा कर सकती हैं। संतोष आज एक अच्छी वक्ता हैं, जो लोगों को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। वह शिक्षा के बढ़ाने के लिए भी कार्य करती हैं। उनका कहना है- ”जीवन में उद्देश्य होना आवश्यक है। उसके लिए कठिन मेहनत करो, कुछ भी बनने का उद्देश्य अवश्य होना चाहिए, तभी तुम जिंदगी का आनंद उठा सकते हो।” संतोष की उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें ‘पद्मश्री’ प्रदान किया गया है। उन्होंने 25 वर्ष की आयु में विवाह कर लिया।
उपलब्धियाँ
- संतोष यादव ने बहुत कम उम्र में एवरेस्ट पर विजय प्राप्त की।
- वह दो बार एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक चढ़ाई करने वाली विश्व की प्रथम महिला हैं।
- संतोष यादव को सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ प्रदान किया गया।
- अगस्त 1989 में इन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर 9 देशों के 31 सदस्यों के नूनकुण्ड अभियान के अन्तर्गत 6600 मीटर ऊंचे व्हाइट पर्वत शिखर पर सफलतापूर्वक चढ़ाई की । इसमें सन्तोष यादव सर्वप्रथम पहुंचने वाली प्रथम महिला थीं ।
- 1990 में काराकोरम शृंखला की सासर कागंरी पीक पर भारत ताईवान के संयुक्त तत्त्वाधान में 3 भारतीयों व 4 जापानियों ने पहुंचने में सफलता प्राप्त की । इस चोटी पर पहुंचने वाली सन्तोष यादव विश्व की सर्वप्रथम महिला थीं ।
- सन् 1991 में कंचनजंघा शिखर पर सफलतापूर्वक चढ़ने के लिए सन्तोष को भारत-तिब्बत सीमा पुलिस में सबइंस्पेक्टर पर से इंस्पेक्टर पद पर पदोन्नत कर दिया । 25 जनवरी 2000 को इन्हें पद्मविभूषण से अलंकृत किया गया ।
- अर्जेटाइना के एकोंन्वागुआ के पर्वत शिखर के पर्वतारोहण के लिए इनके नेतृत्व में प्रथम भारतीय दल जनवरी 1998 में भेजा गया । दो बार एवरेस्ट विजय करने के कारण इन्हें के॰के॰ बिड़ला फाउण्डेशन खेल के विशेष पुरस्कार देने की घोषणा की गयी । 19 अप्रैल 2001 को लिम्का बुक ऑफ रिकार्डस द्वारा सन्तोष को सम्मानित किया गया
उपसंहार:
चार बार असफलता का मुंह देखकर भी इन्होंने हिम्मत नहीं हारी और 12 मई 1992 को दोपहर 12.30 बजे माउण्ट एवरेस्ट पर चढ़ने में सफल रहीं । सन्तोष यादव दो बार विश्व की कम उम्र वाली माउण्ट एवरेस्ट पर फतेह पाने वाली महिला हैं । सफलता साहसी लोगों के कदम चूमती है, यही वास्तविक सत्य है ।
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