हरियाणा की बोली/भाषा, साहित्य और संस्कृति – Language, Literature and Culture of Haryana

हरियाणा का साहित्य और संस्कृति – Literature and culture of Haryana

हरियाणा का साहित्य और संस्कृति - Literature and culture of Haryana

हरियाणा की सांस्कृति व इतिहास :

हरियाणवी संस्कृति समृद्ध संस्कृति है । हरियाणा का नाम लेते ही हमारे मस्तिष्क में एक ऐसे प्रदेश की छवि उभर आती है जिसकी पुरातन धरोहर अत्यंत समृद्ध है और वर्तमान में भी जो देश के सर्वाधिक समृद्ध राज्यों में से एक है। वैदिक भूमि हरियाणा भारतीय सभ्यता का पालना रही है। भारतीय परम्पराओं में इस क्षेत्र को सृश्टि की आधात्री की मान्यता दी जाती है, जहां ब्रह्मा ने प्रथम यज्ञ करके सृष्टि का सृजन किया था। सृजन के इस सिद्धांत की पुष्टि पुरातत्वविद गाय ई.पिलग्रिम की पुरातात्विक खोज में भी होती है जिसके अनुसार डेढ़ करोड़ साल पहले मनुष्य हरियाणा की शिवालिक की पहाड़ियों में रहता था। वामनपुराण के अनुसार राजा कुरु ने कुरुक्षेत्र की पावन भूमि में सात कोस क्षेत्र में भगवान शिव के वाहन नंदी को सोने के धार-फार से युक्त हल में जोतकर कृषि युग की शुरुआत की थी ।

हरियाणा के नाम की उत्पत्ति के संबंध में बहुत सी व्याख्याएं हैं | हरियाणा एक प्राचीन नाम है | पुरातन काल में इस भू-भाग को ब्रह्मवर्त, आर्यवर्त और ब्रह्मोप्देष के नाम से जाना जाता था | ये नाम हरियाणा की इस धरा पर भगवान ब्रह्मा के अवतरण; आर्यों का निवास स्थान और वैदिक संस्कृति के प्रचार-प्रसार पर आधारित हैं । सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह क्षेत्र सृजन की भूमि है और इस धरा पर स्वर्ग के समान है। इसके अन्य नाम बहुधान्यक व हरियानक इस क्षेत्र में खाद्यान्नों और वनस्पति की प्रचुरता के परिचायक हैं।’ जिला रोहतक के बोहर गांव से मिले शिलालेख के अनुसार इस क्षेत्र को हरियानक के नाम से जाना जाता था। यह शिलालेख विक्रमी सम्वत् 1337 के दौरान बलबन काल से सम्बन्धित है। सुल्तान मोहम्मद-बिन-तुगलक के शासनकाल के एक पत्थर पर ‘हरियाणा’ शब्द अंकित है। धरणीधर ने अपनी रचना अखण्ड प्रकाश में लिखा है कि ‘यह शब्द ‘हरिबंका’ से लिया गया है, जो भगवान हरि की पूजा भगवान इंद्र से जुड़ा है। एक अन्य विचारक, गिरीश चंदर अवस्थी इसकी उत्पत्ति ऋग्वेद से मानते हैं, जिसमें हरियाणा नाम को राजा (वासुराजा) के नाम के साथ सार्वनामिक विशेषण के रूप में प्रयोग किया गया है। उनका मत है कि इस क्षेत्र पर उस राजा ने शासन किया था और इस तरह से इस क्षेत्र का नाम हरियाणा उनके नाम पर पड़ गया।

हरियाणा का गौरवपूर्ण अतीत अनेक मिथकों, किवदंतियों और वैदिक संदर्भों से भरा हुआ है। महर्षि वेदव्यास ने इसी पावन धरा पर महाभारत काव्य की रचना की। पांच हजार साल पहले यहीं पर महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का दिव्य संदेश देकर कर्तव्यबोध कराया था। उन्होंने कहा था कि ‘हे मनुष्य तू कर्म कर, फल की चिंता मत कर’ तभी से कर्म का यह दर्शन मानवमात्र का प्रकाश स्तंभ की तरह हर समय मार्गदर्शन कर रहा है।

महाभारत काल से ही हरियाणा बहुधान्यक व बहुधना प्रदेश के रूप में विख्यात है। महाभारत के युद्ध से पहले भी कुरुक्षेत्र में दस राजाओं की लड़ाई हुई थी लेकिन महाभारत का युद्ध धर्म की स्थापना के लिए लड़ा गया था। इसमें भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का पावन संदेश दिया था, जिससे कुरुक्षेत्र पूरे विश्व में विख्यात हो गया।

हरियाणा क्षेत्र अनेक युद्धों का साक्षी रहा है क्योंकि यह उत्तर भारत का प्रवेश द्वार है। हूणों, तुर्कों और तुगलकों ने अनेक बार भारत पर आक्रमण किया और हरियाणा की भूमि पर निर्णायक लड़ाइयां लड़ी गईं। 14वीं शताब्दी के अंत में तैमूरलंग ने इसी क्षेत्र से दिल्ली में प्रवेश किया था। 1526 में मुगलों ने पानीपत की ऐतिहासिक भूमि पर इब्राहिम लोधी को पराजित किया। पानीपत में ही 1556 में एक ओर निर्णायक युद्ध लड़ा गया, जिसने सदियों तक मुगलों को अपराजित शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया। 18वीं शताब्दी के मध्य में मराठाओं ने हरियाणा पर अपना शासन स्थापित किया। भारत में अहमदशाह दुर्रानी के आक्रमण, मराठा शक्ति के उत्थान और मुगलों के पतन के बाद अंततः अंग्रेजी शासन का आगमन हुआ।

वास्तव में हरियाणा का इतिहास साहसी, धर्मनिश्ठ और गौरवशाली लोगों के संघर्ष की गाथा है। प्राचीनकाल से ही हरियाणा के बहादुर लोगों ने बड़े साहस के साथ विदेशी आक्रमणकारियों की सेनाओं का डटकर मुकाबला किया। इन तमाम झंझावातों का सामना करते हुए भी हरियाणा के लोग अपनी गरिमामयी परम्पराओं और इस पावन भूमि के गौरव को बनाए हुए हैं। 1857 में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में यहां के वीरों ने शहादत, त्याग और वीरता का नया इतिहास रचा, जो इस कर्मभूमि की विषेशता को दर्शाता है। हरियाणा के वीरों ने सदैव ही राष्ट्रविरोधी शक्तियों का डटकर मुकाबला किया है।

हरियाणा का समाज सदैव विभिन्न जातियों, संस्कृतियों और धर्मों का मिश्रण रहा है। इस भूमि पर ये सब मिले, आपस में एक-दूसरे से जुड़े और एक सच्चे भारतीय बनकर निखरे। यहीं पर हिन्दू संतों और सिख गुरुओं ने विश्व प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया। महाकवि सूरदास का जन्म हरियाणा के जिला फरीदाबाद में स्थित गांव सीही में हुआ था, जो भारतीय संस्कृति का एक और केन्द्र है। भगवान श्री कृष्ण की कथा हरियाणा के हर आदमी की जुबान पर है। पशुओं के प्रति प्रेम और आहार में दूध की प्रचुरता के कारण इसे दूध-दही की नदियों वाले प्रदेश के रूप में विश्वव्यापी प्रसिद्धि मिली।

भारतीय गणराज्य के एक अलग प्रदेश के रूप में हरियाणा की स्थापना 1 नवम्बर, 1966 को हुई। देश के भौगोलिक क्षेत्र का 1.37 प्रतिशत और जनसंख्या का दो प्रतिशत होने के बावजूद हरियाणा ने विभिन्न क्षेत्रों में शानदार उपलब्धियां प्राप्त की हैं जो अन्य राज्यों के लिए अनुकरणीय हैं। हरियाणा विभिन्न क्षेत्रों में तेजी से विकास करते हुए अग्रणी राज्य बन गया है। हरियाणा आज दूध व खाद्यान्न उत्पादन में अव्वल है। यह आटोमोबाइल, आईटी और अन्य उद्योगों का बड़ा केन्द्र है। यहां अति उत्तम संचार सुविधाओं, विकसित औद्योगिक संपदाओं, चमचमाते चौड़े राजमार्ग, एक्सप्रेस वे, रेलमार्ग, मैट्रो रेल का जाल बिछ चुका है। उन पर बने अनेक ओवर ब्रिज व फ्लाईओवर यातायात को सुगम बना रहे हैं। राज्य का हर गांव बिजली की रोशनी से जगमगा रहा है और आने-जाने के लिए सड़कों से जुड़ा है। यही नहीं पेयजल और सिंचाई के लिए पर्याप्त नहरें व अन्य साधन प्रदेश में उपलब्ध हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी यहां आधुनिक शिक्षा के हर संकाय और विषय की शिक्षा देने के लिए अनेक विश्वस्तरीय शिक्षण संस्थान खुल चुके हैं।

 हरियाणवीं सांग, रागनी, हरियाणवी वेशभूषा, हरियाणवीं हास्य व्यंग्य और खान-पान इस संस्कृति के विशेष अंग है। हरियाणा को एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर गर्व है जो वैदिक काल में वापस जाता है। राज्य लोकगीत में समृद्ध है। हरियाणा के लोगों की अपनी परंपराएं हैं। ध्यान, योग और वैदिक मंत्रों का जप करने की उम्र के पुराने रीति-रिवाजों को अभी भी जनता द्वारा देखा जाता है। मौसमी और धार्मिक त्यौहार इस क्षेत्र की संस्कृति की महिमा करते हैं।

हरियाणा के कुछ प्रमुख नृत्य : धमाल नृत्य, मंजीरा नृत्य, लूर नृत्य, डमरू ,छठी नृत्य इत्यादि |

हरियाणा के कुछ प्रमुख त्यौहार : तीज, फाग, सलोमण (रक्षा बंधन), संक्रात (मकर सक्रांति), गूगा इत्यादि |

हरियाणा का पहनावा :ओढणा, छ्यामा ,पीलिया,चुंदड़ी, डिमाच, दामण इत्यादि |

भारतीय इतिहास और संस्कृति की मुख्य धारा में हरियाणा का योगदान उल्लेखनीय रहा है । विभिन्न लोगों का एक मिलनसार, यह यहाँ था कि वे आए थे, मिल गए और भारतीय संस्कृति बनाने की दिशा में योगदान दिया । यही कारण है कि हरियाणा की वैदिक भूमि प्राचीन भारतीय संस्कृति और सभ्यता का पालना है, यह वह जगह है जहां से पूरे देश में भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता का ज्ञान बढ़ गया और इस भूमि पर हमारे संतों और साधुओं ने वैदिक भजनों को पढ़ा | डॉ. हरि राम गुप्ता, एक प्रसिद्ध इतिहासकार भी इस विचार की पुष्टि करते हैं । वह कहते हैं कि “स्वर्ग और पृथ्वी कभी-कभी संयुक्त नहीं होती और भगवान शायद ही कभी हरियाणा की तुलना में मनुष्य के लिए बेहतर आवास बनाने के लिए सहमत हुए । सबसे अतीत में, इसकी भौगोलिक स्थिति कुछ अलग थी । इस क्षेत्र का वातावरण ठंडा और सुखद था और यह इस क्षेत्र में मनुष्य के सबसे पुराने आवास के लिए जिम्मेदार होना चाहिए । इन (कुछ निष्कर्षों) की वैज्ञानिक जांच के बाद, डॉ गुज बी पिलग्रीम ने निष्कर्ष निकाला कि ढाई करोड़ साल पहले, प्रारंभिक व्यक्ति चंडीगढ़ के चारों ओर पिंजौर क्षेत्र में रहता था । यह भारतीय परंपराओं की पुष्टि करता है जो इस क्षेत्र को सृजन और सभ्यता के मैट्रिक्स के रूप में मानते हैं । यह उत्तरी वेदी की जगह है जहां ब्रह्मा ने प्राचीन बलिदान किया जिससे निर्माण हुआ । लेकिन हरियाणा न केवल मनुष्यों के पालने का सम्मान करता है, बल्कि यह सभ्यता के पालने के रूप में भी काम करता है । भारतीयों ने सिंधु घाटी और सरस्वती के क्षेत्रों में सभ्यता की शुरुआत देखी। हमारा रिकॉर्ड इतिहास आर्यों के साथ शुरू होता है । कई भारतीय इतिहासकार विशेष रूप से प्रो.अबीनाश चंदर दास और डॉ.राधा कुमुद मुखर्जी इस विचार से हैं कि आर्यों का मूल घर हरियाणा क्षेत्र था ।

साहित्यिक परंपरा के लिए यह हमेशा धरती पर बहुत ही स्वर्ग और स्वर्ग की भूमि रही है । यहां अपने युद्धक्षेत्रों-ताराओरी, करनाल और पानीपत पर – भारतीय इतिहास के निर्णायक कार्यों का आयोजन हुआ और उत्पीड़न की शक्तियों का उल्लंघन किया गया ।

इस विषय पर, इतिहासकारों और विद्वानों के अलग-अलग विचार हैं | संस्कृति के दायरे और दायरे के संबंध में, संस्कृति की वास्तविक सामग्री पर जाने से पहले पं जवाहर लाल नेहरू के विचारों को उद्धृत करना फायदेमंद है। “वास्तव में ‘संस्कृति’ क्या है जो लोग इस बारे में बहुत बात करते हैं? जब मैं छोटा था, मुझे जर्मन ‘कुल्तुर’ और जर्मन लोगों के विजय और अन्य माध्यमों से इसे फैलाने के प्रयासों के बारे में पढ़ना याद है । इस कुल्तुर को फैलाने और इसका विरोध करने के लिए एक बड़ा युद्ध था |
हर देश और हर व्यक्ति को संस्कृति का अनोखा विचार लगता है | जब सांस्कृतिक संबंधों के बारे में बात होती है- यद्यपि यह सिद्धांत में बहुत अच्छा है-वास्तव में क्या होता है क्योंकि ये अनोखे विचार संघर्ष में आते हैं और दोस्ती की ओर अग्रसर होने के बजाय वे अधिक असंगत होते हैं | यह एक बुनियादी सवाल है – संस्कृति क्या है? और मैं निश्चित रूप से आपको इसकी परिभाषा देने के लिए सक्षम नहीं हूं क्योंकि मुझे एक नहीं मिला है।

कोई भी प्रत्येक देश और प्रत्येक अलग सभ्यता को अपनी संस्कृति विकसित कर सकता है जिसकी जड़ें सैकड़ों और हजारों साल पहले पीढ़ी में थीं | एक इन आक्रमणों को आवेग से ढाला देखता है जो शुरू में सभ्यता को अपने लंबे रास्ते पर शुरू कर देता है | यह अवधारणा अन्य अवधारणाओं से प्रभावित होती है और कोई इन अलग-अलग धारणाओं के बीच कार्रवाई और बातचीत को देखता है । मुझे लगता है कि, दुनिया में ऐसी कोई संस्कृति नहीं है जो किसी भी अन्य संस्कृति द्वारा बिल्कुल पुरानी, ​​शुद्ध और अप्रभावित है । यह बस नहीं हो सकता है, जैसा कि कोई भी नहीं कह सकता कि वह एक सौ प्रतिशत से संबंधित है, एक विशेष नस्लीय प्रकार के लिए, क्योंकि सैकड़ों और हजारों वर्षों के दौरान अचूक परिवर्तन और मिश्रण हुए हैं ।

 

हरियाणवी भाषा या बोली

हरियाणवी भाषा को एक सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रीय भाषा के रूप में सराहा गया है यह  भाषा, भाषा न होकर एक बोली है  जो इंडो आर्यन परिवार से ताल्लुक रखती हैं । वैसे तो हरियाणवी में कई लहजे हैं , जो विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार बदल जाती है । उत्तर हरियाणा में बोली जाने वाली हरियाणवी थोड़ा सरल होती है तथा हिन्दी भाषी व्यक्ति इसे थोड़ा बहुत समझ सकते हैं। दक्षिण हरियाणा में बोली जाने वाली बोली को ठेठ हरियाणवी कहा जाता है। यह कई बार उत्तर हरियाणा वालों को भी समझ में नहीं आती ।

इसके अतिरिक्त विभिन्न क्षेत्रों में हरियाणवी भाषा समूह के कई रूप प्रचलित हैं जैसे बाँगर, राँघड़ी आदि।

राजस्थान से सटे जिले – महेंद्रगढ़ और रेवाड़ी जिलों में अहिरवती, भिवानी, सिरसा और हिसार जिलों में बागड़ी, मेवात जिले में मेवाती और फरीदाबाद और गुड़गांव जिले में ब्रजभाषा बोलते हैं ।

जींद और कैथल जिले में बांगरू बोली जाती है । कैथल, जींद, हिसार (नारनौल, उकलाना, हाँसी की तरफ), असंध, गोहाना में बोली जाने वाली हरियाणवी- बोली को  हरियाणवी के मानक और वास्तविक रूप के तौर पर जाना जाता है जो  सोनीपत, झज्जर, आदि में बोली जाने वाली हरयाणवी से अलग है |

हरियाणवी भाषा का विकास – शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है

हरियाणवी भाषा पश्चमी हिंदी की उपभाषा है

हरियाणवी में मुख्य तौर पर छह बोलियाँ है

हरियाणवी में बांगरु भाषा का नामकरण किया है – डॉ० ग्रियर्सन ने |

देशी बोली किसे कहा जाता है – बांगरू को |

अहीरवाटी क्षेत्र को “हिरी” के नाम से भी जाना जाता है |

सूरदास – ब्रज के प्रसिद्ध हरियाणवी कवि हैं, इनका जन्म – वल्लभगढ के सीही गाँव में हुआ था |

कौरवी को – मानक हिंदी के विकास में प्रमुख बोली माना गया है | इसको अम्बालवी भी कहते हैं | डॉ० कैलाशचन्द्र सिंघल ने 650 शब्दों की सूची कौरवी में सम्मलित की है |

बागड़ क्षेत्र की बोली को – बागड़ी कहते हैं |

 

हरियाणा – साहित्य और संस्कृति पर कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न- 1. क्या हरियाणवी को भाषा का दर्ज़ा प्राप्त है?

उत्तर- नहीं हरियाणवी केवल बोली है, इसे अभी तक भाषा का दर्ज़ा नहीं मिला है|

 

प्रश्न- 2. हरियाणा में साहित्य और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कौन-कौन-सी अकादमी हैं?

उत्तर-

  1. हरियाणा साहित्य अकादमी
  2. हरियाणा ग्रन्थ अकादमी
  3. हरियाणा उर्दू अकादमी
  4. हरियाणा संस्कृत अकादमी
  5. हरियाणा इतिहास एवम् संस्कृति अकादमी|

 

प्रश्न- 3. हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा कौन-कौन से पुरस्कार दिए जाते हैं ?

उत्तर-

  1. आजीवन साहित्य साधना सम्मान| राशी 5.00 लाख रूपये|
  2. पं. माधव प्रसाद मिश्र सम्मान| राशी 2.50 लाख रूपये
  3. महाकवि सूरदास सम्मान| राशी 1.50 लाख रूपये|
  4. बाबू बालमुकुन्द गुप्त सम्मान| राशी 1.00 लाख रूपये|
  5. लाला देशबंधु गुप्त सम्मान| राशी 1.00 लाख रूपये|
  6. पं. लखमीचंद सम्मान| राशी 1.00 लाख रूपये|
  7. जनकवि मेहर सिंह सम्मान| राशी 1.00 लाख रूपये|
  8. हरियाणा गौरव सम्मान|राशी 1.00 लाख रूपये|
  9. आदित्य-अल्हड हास्य सम्मान| राशी 1.00 लाख रूपये|
  10. श्रेष्ठ महिला रचनाकार सम्मान| राशी 1.00 लाख रूपये|

उपरोक्त पुरस्कारों के अलावा प्रतिवर्ष श्रेष्ठ कृति पुरस्कार भी दिए जाते हैं|

 

प्रश्न- 4. हरियाणा साहित्य अकादमी की मासिक पत्रिका का क्या नाम है?

उत्तर- हरिगंधा|

 

प्रश्न-5. हरियाणा ग्रन्थ अकादमी की मासिक पत्रिका का क्या नाम है?

उत्तर- कथा समय और सप्त सिंधु|

 

प्रश्न- 6. हरियाणा में आकाशवाणी केंद्र कहाँ-कहाँ स्थित हैं?

उत्तर- 1.रोहतक 2. कुरुक्षेत्र 3. हिसार 4. सिरसा 5. अम्बाला |

 

प्रश्न- 7. हरियाणा में दूरदर्शन केंद्र कहाँ है?

उत्तर- हिसार |

 

प्रश्न- 8. हरियाणा का राज्य कवि कौन है?

उत्तर- श्री उदयभानू हंस|

 

प्रश्न- 9. धरोहर संग्रहालय कहाँ स्थित है?

उत्तर- कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में|

 

प्रश्न- 10. हरियाणा उर्दू अकादमी की स्थापना कब हुई?

उत्तर- 22 दिसम्बर, 1985

 

प्रश्न- 11. हरियाणा उर्दू अकादमी कौन-कौन से पुरस्कार देती है?

उत्तर- राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार

  1. हाली पुरस्कार| राशी एक लाख रूपये|

राज्य स्तरीय पुरस्कार

  1. मुंशी गुमानी लाल सम्मान| राशी 21,000 रूपये
  2. कंवर महेंद्र सिंह बेदी सम्मान| राशी 21,000 रूपये
  3. सुरेन्द्र पंडित सोज़ सम्मान| राशी 21,00 रूपये

 

प्रश्न- 12. हरियाणा साहित्य अकादमी का गठन कब हुआ ?

उत्तर- 09 जुलाई 1970 को

 

प्रश्न- 13. हरियाणा उर्दू अकादमी की पत्रिका का क्या नाम है ?

उत्तर- जमना तट|

 

प्रश्न- 14. हरियाणा पंजाबी साहित्य अकादमी पंचकूला की पत्रिका का क्या नाम है ?

उत्तर- शब्द बूंद |

 

प्रश्न- 15. हरियाणा संस्कृत अकादमी की मासिक पत्रिका का क्या नाम है ?

उत्तर- हरिप्रभा |

 

प्रश्न- 16. हरियाणा में अंतर्राष्ट्रीय क्राफ्ट मेला कहाँ लगता है ?

उत्तर- सूरजकुंड (फरीदाबाद)

 

प्रश्न- 17. सूरजकुंड क्राफ्ट मेला कब लगता है ?

उत्तर- प्रति वर्ष 1 से 15 फरवरी तक |

 

प्रश्न- 18. हरियाणा का सबसे चर्चित और लोकप्रिय लोक कवि किसे माना जाता है?

उत्तर- पंडित लख्मीचंद|

 

प्रश्न- 19. हरियाणा के सबसे प्रसिद्ध उर्दू शायर कौन थे ?

उत्तर- हाली पानीपती|

 

प्रश्न- 20. श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश हरियाणा में किस स्थान पर दिया ?

उत्तर- ज्योतिसर (कुरुक्षेत्र)

 

प्रश्न- 21 साहित्यकार प.माधव प्रसाद मिश्र का जन्म कहाँ हुआ?

उत्तर- गाँव कुंगड़ जिला भिवानी|

 

प्रश्न- 22 मूर्धन्य संपादक बाबू बालमुकुन्द गुप्त का जन्म कहाँ हुआ?

उत्तर- गाँव गुडियानी जिला रेवाड़ी

 

हरियाणा साहित्य अकादमी का पुरस्कार

  • हरियाणा साहित्य अकादमी साहित्यकार सम्मान योजना के अंतर्गत अब तक 102 साहित्यकारों को सम्मानित किया जा चुका है
  • अशोक भाटिया समुद्र का संसार पुस्तक पर हरियाणा साहित्य अकादमी का प्रथम पुरस्कार (1991)
  • वर्ष 2008-09 में कहीं कुछ जल रहा है! हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत।
  • हरियाणा साहित्य अकादमी के अध्यक्ष तथा हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा द्वारा हरियाणा साहित्य अकादमी के वर्ष 2011 के साहित्यकार सम्मान को स्वीकृति प्रदान की गई है।
  • अकादमी द्वारा इस वर्ष 2012 प्रदेश के 14 साहित्यकारों को सम्मानित किया जायेगा
  • इसी वर्ष से आजीवन साहित्य साधना के लिए राष्ट्रीय स्तर पर 5 लाख की सम्मान राशि वाले आजीवन साहित्य साधना सम्मान
  • पिछले वर्ष से ही हरियाणा साहित्य रत्न सम्मान की राशि 2 लाख से बढ़ाकर 2.50 लाख रूपये
  • महाकवि सूरदास सम्मान की राशि 1 लाख से बढ़ाकर 1.5० लाख की गई है।
  • पिछले वर्ष से ही 1-1 लाख रुपये की राशि के महिला रचनाकारों के लिए अलग से श्रेष्ठ महिला रचनाकार सम्मान
  • ओमप्रकाश आदित्य-अल्हड़ बीकानेरी हास्य सम्मान
  • जनकवि मेहर सिंह सम्मान आरम्भ किये गये हैं।
  • वर्ष 2011 के लिए बाबू बालमुकुन्द गुप्त सम्मान (हिन्दी साहित्य) के लिए साहित्यकार श्री राम कुमार आत्रेय, कुरुक्षेत्र का चयन किया गया है।

  • हरियाणा साहित्य अकादमी ने हिंदी व हरियाणवी भाषा के वर्ष 2017, 2018 व 2019 के लंबित श्रेष्ठ कृति पुरस्कारों व हिंदी कहानी पुरस्कारों की घोषणा की है। अकादमी प्रतिवर्ष हिन्दी साहित्य वर्ग में 10 पुरस्कार तथा हिन्दी भाषा में 6 पुरस्कार व हरियाणवी में 4 श्रेष्ठ कृति पुरस्कार प्रदान करती है।
  • हिन्दी श्रेष्ठ कृति पुरस्कार (वर्ष 2017) डाॅ. सुशील ‘हसरत’ नरेलवी (काव्य- तसव्वुर के आईने से), कृष्णा बाछल (उपन्यास-अजन्मी चीख), डाॅ. अशोक कुमार (आलोचना- हिन्दी कहानी में सचेतन दृष्टि के उन्नायक डाॅ. महीप सिंह), मंजरी शुक्ला (बाल साहित्य- फूलों के रंग), रामकुमार गुप्ता (विधि क्षेत्र- आयकर कैसे बचाएं), जगवीर सिंह (अध्यात्म- धर्म एवं दर्शन) , डाॅ. सतीश चन्द्र अग्रवाल (प्रज्ञा प्रसंग- सुसंस्कार निर्माण)

 

  • हरियाणवी : सत्यवीर नाहड़िया (रागनी- बख़त बख़त की बात), शमशेर सिंह नरवाल (लोक साहित्य- हरियाणा: कल और आज ) हिन्दी श्रेष्ठ कृति पुरस्कार योजना (वर्ष 2018)
  • डाॅ. शिवकान्त (काव्य- दर्द की दहलीज़ से), डाॅ. कमलेश मलिक (कहानी- एक मोर्चा और), आनंद प्रकाश आर्टिस्ट (उपन्यास-खोया हुआ विश्वास) , डाॅ. संजीव कुमार (एकांकी- समाधि सर्प), डाॅ. सुरेन्द्र गुप्त (व्यंग्य- जांच अभी जारी है), विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ (जीवनी- लोक साहित्यकार: जयलाल दास), सूबेसिंह मौर्य (आलोचना- सुन्दरकाण्ड का सौंदर्य एवं मानव हित), कृष्णलता यादव (बाल साहित्य- पशु एकता जिन्दाबाद) , डाॅ. मनमोहन शर्मा (धर्म एवं दर्शन – ऋग्वेद में ज्ञान और विज्ञान), आशा यादव (आयुर्विज्ञान -उपयोगी पेड़ पौधे-निरोगी काया), डाॅ. संजीव कुमारी (पर्यावरण- झड़ते पत्ते)

 

  • हरियाणवी : कविराज जे.आर.जे. यादव (रागनी- दुष्ट-दलन दृष्टांत अर्थात महाबली हनुमान), प्रदीप नील (कथा साहित्य -जाट कहवै, सुण जाटणी), डाॅ. राजकला देशवाल (लोक साहित्य- लोक साहित्य के विविध आयाम), समशेर कोसलिया (नाटक- दरद)

 

  • हिन्दी श्रेष्ठ कृति पुरस्कार योजना-2019 : अनिल कुमार पृथ्वीपुत्र (काव्य- अमर जवान सतसई ), आशा खत्री लता (कहानी - काली चिड़िया), अजय सिंह राणा (उपन्यास- तेरा नाम इश्क) , जसविंदर शर्मा (नाटक – जलती हुई नदी) , डाॅ. जितेन्द्र कुमार (ललित निबंध व्यंग्य बाणों का तूणीर), संतोष (यात्रा वृतांत -फेसबुक आॅफ सिलीकाॅन वैली), तेजिन्द्र (आलोचना – हिन्दी गज़ल एवं अन्य काव्य विधाएं) , रिसाल जांगड़ा (बाल साहित्य -घुँघरू बचपन के) , डाॅ. सतपाल सिंह (विधि क्षेत्र- सूचना का अधिकार अधिनियम-2005) , संतोष गर्ग (धर्म एवं दर्शन-सनातन वार्ता)

 

  • हरियाणवी : हरिपाल गौड़ (रागनी – सांग-सुधा)
  • डाॅ. ज्ञानी देवी (निबंध- दरद नै ए दवा बणा)

 

  • हिन्दी कहानी प्रतियोगिता (वर्ष 2017) : महेन्द्र सिंह ‘सागर’ (प्रलय का प्यार- प्रथम), कमलेश चौधरी (रिश्वत- द्वितीय), अरुण कुमार (एक आदिम सोच- तृतीय)

 

  • हिंदी कहानी प्रतियोगिता (वर्ष 2018) : डाॅ. सुषमा गुप्ता (कैसे कैसे दर्द- प्रथम), आशा रानी (काली दोपहर- द्वितीय), माहिया ‘समीर’ (फसल की प्यास- तृतीय)

 

  • हिंदी कहानी प्रतियोगिता (वर्ष-2019) : डाॅ. इन्दु गुप्ता (दण्डनायिका- प्रथम), नवरत्न पांडे (आवाजें- द्वितीय), डाॅ. मेघा ग्रोवर (ढाबेवाली- तृतीय)

 

67 पांडुलिपियां अनुदान के लिये चयनित

  • हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2017, 2018 व 2019 में प्राप्त पाण्डुलिपियों में से हिन्दी व हरियाणवी की 76 पाण्डुलिपियों को अनुदान के लिये चुना गया है।
  • वर्ष 2017 : सुरेश कुमार, सजयुलीचन्द रमन, चित्रा, सुशीला शिवराण, शैलेन्द मोहन ‘शैल’, सुनीता काम्बोज, विनिता मलिक ‘नवीन’, शकुंतला काजल, जितेन्द्र गोयल ‘जुगनू’, कमलेश गोयत,कुलदीप सिंह -सजयाका, राम निवास शर्मा, पृथ्वी सिंह बिश्नोई, रत्नचन्द सरदाना, रौनक हरियाणवी तथा हरियाणवी में परमानन्द, नवरत्न आदि।
  • वर्ष 2018 : मेहरू शर्मा प्यासा, गोविन्द चावल, मानक चंद जैन, अर्चना कोचर, सुशील हसरत नरेलवी़, बलबीर सिंह वर्मा, वीरेन्द्र कुमार शर्मा, राजेन्द्र सिंह, हरनाम शर्मा, राकेश कुमार जैनबन्धु, अंजलि, ओम बनमाली, राशिद अमीननदवी, गुरजिंदर कौर, डाॅ. प्रतिभा गुप्ता माही, भावना सक्सैना, सूबेसिंह मौर्य, सुनीता, सविता गर्ग, दीपिका ‘खिच्ची,, श्विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ तोश, सुषमा शर्मा, मंजीत कौर, धीरजा शर्मा, नवलपाल प्रभाकर, के.के. नन्दा ‘अश्क’, अनिता सुरभि, शचमन शर्मा ‘चमन’, विजय कुमार, राम बागवान कालका, सत्यवीर नाहड़िया।
  • हरियाणवी : राजबीर वर्मा, कवलसिंह, रघबीर शर्मा, सत्यवीर नाहड़िया, पवन कुमार, होशियार सिंह, डाॅ. संजीव कुमारी, अमितकुमार, सजय़, अजमेर सिंह जांगलान, डाॅ. रमाकान्ता।
  • वर्ष 2019 : विकास होडलिया ‘नसीब’, डाॅ. मोह. अय्यूब खान पंचकूला, अनिल शर्मा ‘वत्स’ भिवानी, राजेन्द्र कुमार अम्बाला छावनी, डाॅ. चन्द्र शेखर, पूनम जोशी, शिखा श्याम राणा, रीना देवी, डाॅ. इन्दु गुप्ता, सत्यप्रकाश गुप्ता, डाॅ. मुहम्मद मुस्तमिर, सरस्वती चन्द्र जमदग्नि, विनोद कुमार आचार्य।
  • हरियाणवी : खान मनजीतवड़िया ‘मजीद’, डाॅ. रजनी दीप, डाॅ. दयानंद कादियान।
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