चौधरी देवी लाल की संक्षिप्त जीवनी, महत्वपूर्ण प्रश्न, तथ्य – Chaudhary Devi Lal’s Biography, Facts and Important Questions
हिसार जिले के तेजाखेड़ा गांव में भारत के उप प्रधानमंत्री के रूप में
चौधरी देवी लाल के जीवन के महत्वपूर्ण तथ्य
नाम
चौधरी देवी लाल
उपनाम
ताऊ या ताऊ देवी लाल
जन्म
25 सितंबर 1914 को
विवाह
सन 1926 में हरखी देवी केसाथ
राजनीतिक दल
भारतीय राष्ट्रीय लोक दल
कार्यकाल
हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में
मृत्यु
6 अप्रैल 2001 (उम्र 85)
चौधरी देवी लाल के जीवन बारे में महत्वपूर्ण तथ्य और प्रश्न पढ़ें
चौधरी देवी लाल को भारतीय राजनीति के पुरोधा, किसानों के मसीहा, महान् स्वतंत्रता सेनानी, हरियाणा के जन्मदाता, राजनीति के भीष्म-पितामह, करोड़ों भारतीयों के जननायक के रूप में ख्याति प्राप्त हैं। उन्होंने आजीवन किसान, मज़दूरों एवं ग़रीब वर्ग के लोगों के लिए लड़ाई लड़ी। आज उनका क़द भारतीय राजनीति में बहुत ऊंचा है। लोग उन्हें भारतीय राजनीति के अपराजित नायक के रूप में जानते हैं।
आरंभिक जीवन, जन्म व माता पिता
चौधरी देवी लाल के पिता का नाम चौधरी लेख राम था व माता जी का नाम श्रीमती शुंगा देवी था । उनका जन्म हिसार जिले के तेजाखेड़ा गांव में 25 सितंबर 1914 को हुआ था। देवी लाल की पैतृक जड़ें राजस्थान के बीकानेर से जुडी हुई थी, जहाँ से उनके परदादा तेजराम चले गए थे। 1919 में जब लाल पाँच साल के थे, तब उनके पिता लेखराम, चौटाला गाँव आ गए ।चौधरी देवी लाल ने अपने स्कूल की दसवीं की पढ़ाई छोड़कर सन् 1929 से ही राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था।
चौ. देवीलाल ने सन् 1929 में लाहौर में हुए कांग्रेस के ऐतिहासिक अधिवेशन में एक सच्चे स्वयं सेवक के रूप में भाग लिया और फिर सन् 1930 में आर्य समाज ने नेता स्वामी केशवानन्द द्वारा बनाई गई नमक की पुड़िया ख़रीदी, जिसके फलस्वरूप देशी नमक की पुड़िया ख़रीदने पर चौ. देवीलाल को हाईस्कूल से निकाल दिया गया। इसी घटना से प्रभाविक होकर देवी लाल जी स्वाधीनता संघर्ष में शामिल हो गए। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। देवी लाल जी ने देश और प्रदेश में चलाए गए सभी जन-आन्दोलनों एवं स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर भाग लिया। इसके लिए इनको कई बार जेल यात्राएं भी करनी पड़ीं।
व्यक्तिगत जीवन
उनका विवाह सन 1926 में हरखी देवी साथ हुआ। उनकी कुल 5 संताने हुई जिनमें चार पुत्र तथा एक पुत्री थी। उनके पुत्रों के नाम है ओमप्रकाश चौटाला, प्रताप चौटाला और रण जीत सिंह तथा जगदीश चौटाला।
वर्तमान समय में उनके कई नाती तथा पोते हरियाणा की राजनीति में कई दलों में सक्रिय हैं उनमें प्रमुख हैं जननायक जनता पार्टी के संयोजक दुष्यंत चौटाला तथा ओम प्रकाश चौटाला के बड़े बेटे अजय चौटाला के सुपुत्र हैं। दुष्यंत चौटाला के छोटे भाई दिग्विजय चौटालाा भी राजनीति में सक्रिय हैं । ओम प्रकाश चौटाला के दूसरे बेटे अभय चौटाला भी विधानसभा विधायक रहे हैं। अजय चौटालाा की पत्नी नैना चौटाला भी वर्तमान मेंं हरियाणा की राजनीति में भागीदार हैं ।
स्वतंत्रता के बाद
आजादी के बाद, वह भारत के किसानों के लोकप्रिय नेता के रूप में उभरा और देवी लाल ने एक किसान आंदोलन शुरू किया और उन्हें अपने 500 आंदोलनकारियो के साथ गिरफ्तार कर लिया गया । कुछ समय बाद, मुख्यमंत्री, गोपी चंद भार्गव ने एक समझौता किया और मुज़रा अधिनियम में संशोधन किया गया। उन्होंने एक अलग राज्य के रूप में हरियाणा के गठन में एक सक्रिय और निर्णायक भूमिका निभाई। 1975 में, इंदिरा गांधी ने आपातकाल और देवी लाल की घोषणा की, साथ ही सभी विपक्षी नेताओं को 19 महीनों के लिए जेल भेज दिया गया। 1977 में, आपातकालीन समाप्ति और आम चुनाव हुए। वह जनता पार्टी की टिकट पर चुने गए और हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। आपातकाल और तानाशाही कुशासन के अपने दृढ़ विरोध के लिए उन्हें शेर-ए-हरियाणा (हरियाणा का शेर) के नाम से जाना जाने लगा।
वह 1 980-82 से संसद सदस्य बने और 1982 और 1 987 के बीच राज्य विधानसभा सदस्य रहे। उन्होंने लोक दल का गठन किया और हरियाणा संघर्ष समिति के बैनर के तहत, न्याय यात्रा (न्याय के लिए लड़ाई) युद्ध शुरू किया, और बेहद लोकप्रिय हो गए जनता के बीच 1987 के राज्य चुनावों में, देवीलाल की अगुआई वाली गठबंधन ने 90 सदस्यीय घर में 85 सीटें जीती थी। कांग्रेस ने अन्य पांच सीटें जीती देवीलाल दूसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। 1989 के संसदीय चुनाव में, वह एक साथ चुने गए, दोनों सीकर, राजस्थान और रोहतक, हरियाणा से। फिर इन्होंने सीकर की सीट रख ली और रोहतक की सीट छोड़ दी. इसके बाद चौधरी देवीलाल रोहतक से कभी जीत नहीं पाए. 1991,1996 और 1998 में भूपिंदर सिंह हुड्डा ने उनको तीनों बार हराया.
राजनीतिक जीवन
उन्होंने भारतीय राजनीतिज्ञों के सामने अपना जो चरित्र रखा वह वर्तमान दौर में बहुत प्रासंगिक है। चौधरी देवीलाल उन कुछ चुनिंदा राजनीतिज्ञों में से हैं जो आजादी के बाद तथा आजादी के पहले दोनों ही समय में भारतीय राजनीति में सक्रिय रहे। देश की आजादी के बाद जब पहली बार चुनाव हुए तब हरियाणा पंजाब राज्य का हिस्सा था और वहां हुए विधानसभा चुनावों में चौधरी देवीलाल पहली बार सन1952 में पंजाब विधानसभा के सदस्य और 1956 में पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। उसके बाद पुनः 1957 तथा 62 मैं भी पंजाब विधानसभा के सदस्य रहे। 1962 से 1966 तक हरियाणा को पंजाब से अलग राज्य बनवाने में निर्णायक भूमिका निभाई। प्रदेश के निर्माण के लिए संघर्ष करने वाले चौधरी देवीलाल को हरियाणा निर्माता के तौर पर जाना जाने लगा। देवी लाल 1971 तक कांग्रेस में थे । 1977 में वो जनता पार्टी में आ गए ।
देवी लाल जी ने सन् 1977 से 1979 तथा 1987 से 1989 तक हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जनकल्याणकारी नीतियों के माध्यम से पूरे देश को एक नई राह दिखाई। केन्द्र में प्रधानमंत्री के पद को ठुकरा कर भारतीय राजनीतिक इतिहास में त्याग का नया आयाम स्थापित किया।
आज के दौर में कल्पना करना मुश्किल है कि भारत में ऐसा कोई नेता रहा है जो बहुमत से संसदीय दल का नेता मान लिए जाने के बाद भी अपनी जगह किसी दूसरे शख़्स को प्रधानमंत्री बना देता हो । लेकिन हरियाणा के चौधरी देवीलाल ने ये कर दिखाया था, पहली दिसंबर, 1989 को आम चुनाव के बाद नतीजे आने के बाद संयुक्त मोर्चा संसदीय दल की बैठक हुई और उस बैठक में देवीलाल धन्यवाद देने के लिए खड़े ज़रूर हुए लेकिन सहज भाव से उन्होंने कहा, “मैं सबसे बुजुर्ग हूं, लोग मुझे ‘ताऊ’कहकर बुलाते है इसलिए मुझे ताऊ ही रहने दिया जाए और मैं ये पद विश्वनाथ प्रताप को सौंपता हूं”। देवीलाल के इस वक्तव्य और जिंदादिली को आज भी लोग पसंद करते हैं । चौधरी देवीलाल वी.पी.सिंह सरकार में उप प्रधानमंत्री रहे, वीपी सिंह ने बाद में देवीलाल को अपने मंत्रिमंडल से हटा दिया । 11 महीने बाद ही वीपी सिंह की सरकार गिर गई । बाद में जब चंद्रशेखर ने जनता दल का विभाजन कराया और राजीव गांधी के सहयोग से चार महीने की समाजवादी सरकार के प्रधानमंत्री बने । तब देवीलाल ने भी चंद्रशेखर गुट को अपना समर्थन दिया और चंद्रशेखर की सरकार में भी उप प्रधानमंत्री बने । उन्होंने वी पी सिंह और चंद्र शेखर की सरकारों में 1989 से 1991 तक भारत के 6 वें उप प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया।
सन 1972 में हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए और देवीलाल भजनलाल और बंसीलाल दोनों से नाराज हो गए । नाराज होकर उन्होंने आदमपुर और तोशाम दोनों ही सीटों से निर्दलीय पर्चा भर दिया और दोनों सीटों पर चुनाव हार गए ।
उपप्रधानमंत्री के बाद का दौर
उप प्रधानमंत्री बनने के बाद का दौर चौधरी देवी लाल के लिए बहुत ही खराब रहा। उसके बाद हुए तीन लोकसभा चुनावों सन 1991, 1996, तथा 1998 में चौधरी देवी लाल हरियाणा की रोहतक सीट से खड़े हुए और अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदी भूपेंद्र सिंह हुड्डा से तीनों चुनाव में परास्त हुए। अंत में उनके पुत्र ओम प्रकाश चौटाला ने 1998 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनवा दिया ।
मृत्यु
राज्यसभा का सदस्य रहते हुए ही 2001 में उनकी मृत्यु हो गई। 6 अप्रैल, 2001 को चौधरी देवीलाल का निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार राजधानी दिल्ली में यमुना नदी के तट पर चौधरी चरण सिंह की समाधि किसान घाट के पास संघर्ष स्थल पर हुआ था।
उपलब्धिया
- इंडियन नेशनल लोकदल की स्थापना भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल जी ने साल 1996 में की थी।
- देवीलाल ने हरियाणा में काम के बदले अनाज, जच्चा-बच्चा योजना, वृद्धावस्था पेंशन जैसी दूरगामी नीतियों को लागू किया।
- हरियाणा निर्माता – संयुक्त पंजाब के समय वर्तमान हरियाणा जो उस समय पंजाब का ही हिस्सा था, विकास के मामले में भारी भेदभाव हो रहा था। उन्होंने इस भेदभाव को खत्म करने के लिए और हरियाणा को अलग राज्य बनाने के लिए संघर्ष किया। जिसके परिणामस्वरूप 1 नवम्बर, 1966 को अलग हरियाणा राज्य अस्तित्व में आया और प्रदेश के निर्माण के लिए संघर्ष करने वाले चौधरी देवीलाल को हरियाणा निर्माता के तौर पर जाना जाने लगा।
- चौधरी देवीलाल भारत के 2001 के टिकट पर
कुछ किस्से देवीलाल के
- देवीलाल के राजनीतिक जीवन से कई रोचक किस्से जुड़े हैं, उनमें से एक है बलराम जाखड़ को हराना था. बात उन दिनों की है जब 1989 में उन्होंने राजस्थान के सीकर से खड़े होकर बलराम जाखड़ को लोकसभा चुनाव में हराया था. बलराम जाखड़ लोकसभा स्पीकर हुआ करते थे और अपने क्षेत्र में कहा करते थे कि प्रधानमंत्री भी मुझसे पूछकर बोलते हैं. पर देवीलाल ने नारा बुलंद किया- चारा चोर, कमीशनखोर, सीकर छोड़, सीकर छोड़. ये भारी पड़ गया.
- आपातकाल के समय चौ. देवीलाल को जब गिर तार कर महेन्द्रगढ़ के किले में बंद कर दिया गया था। एक छोटी सी कालकोठरी में जहां दो व्यक्ति भी नहीं सो सकते, चौधरी देवीलाल, मनीराम बागड़ी, सहित तीन व्यक्तियों को कोठरी में बंदी बनाया गया। ऐसे में संतरी शाम को 6 बजे कोठरी में ताला लगाता था और प्रात: 9 बजे ताला खोलता था। एक साथ कोठरी में दो व्यक्ति को लेटना पड़ता था तथा तीसरा व्यक्ति कपड़े से हवा झोलता था, क्योंकि कोठरी में जहां एक ओर दो ही व्यक्तियों के लेटने की व्यवस्था थी, वहीं दूसरी ओर मोटे-मोटे मच्छरों की भरमार थी। बिजली-पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी। कोठरी में केवल एक ही छेद था, जिसमें से रोशनी आती थी। इतना ही नहीं वहां पर शौचालय की भी सुविधा नहीं थी। वे कभी भी कठिन से कठिन परिस्थितियों में मुर्झाए नहीं और उन्होंने विपरित से विपरित परिस्थितियों में संघर्ष करने की प्रेरणा दी। उन्हें विश्वास था कि एक दिन हमारा संघर्ष रंग लाएगा और हरियाणा की जनता को न्याय मिलेगा।
- चौधरी देवी लाल अक्सर कहा करते थे कि भारत के विकास का रास्ता खेतों से होकर गुजरता है, जब तक ग़रीब किसान, मज़दूर इस देश में सम्पन्न नहीं होगा, तब तक इस देश की उन्नति के कोई मायने नहीं हैं। इसलिए वो अक्सर यह दोहराया करते थे- “हर खेत को पानी, हर हाथ को काम, हर तन पे कपड़ा, हर सिर पे मकान, हर पेट में रोटी, बाकी बात खोटी“
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